दुपहरिया -28-Mar-2023
दुपहरिया- पर कविता
तमतमाती चमक
लपलपाती लपक
लू की गर्म हवाएं
बहती दायें बायें
छांव भी गर्म
पांव भी नर्म
जल उठते थे
नंगे जब चलते थे।
दुपहरिया को क्या पता?
गरीबी है एक खता?
मेहनत ही उसकी सजा
उसके लिए
क्या जीवन क्या मजा
पेट के लिए वो तो
हमेशा ही जलते हैं।
मजदूर भी फसल की तरह
असहनीय तेज लू में
पक सा जाता है
पर फसल पकता है
व्यक्ति जलता है
यही तो खलता हैं।
दुपहरिया रहम कर
चल सहम कर
न जला न जल
रोक ले
ये कहर का पल
रोज तो वैसे ही
नंगे कितने मरते हैं।
तुझसे कौन जीत सकता है?
इसीलिए तो हर कोई
बाहर निकलने से डरता है।
रचनाकार -रामबृक्ष बहादुरपुरी अम्बेडकरनगर यू पी
Renu
29-Mar-2023 08:18 PM
👍👍🌺
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अदिति झा
29-Mar-2023 08:47 AM
V nice 👍🏼
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Ajay Tiwari
29-Mar-2023 07:49 AM
Very nice
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